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Showing posts from December, 2018

Sciatica( साइटिका,गृध्रसी)का कारण तथा इलाज

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                          गृध्रसी या साइटिका -            यह  एक nerve या तंत्रिक से संबंधित रोग है ।यह  nerve रीढ़ की हड्डी से शुरू होती है और कुल्हे और नितंबों के माध्यम से चलती हुई दोनों पैर में दो शाखाएं हो जाती है। जब इस nerve में चोट लगती है ,या कभी  कुल्हे की हड्डियों द्वारा दबती है, तो अत्यंत पीड़ा की अनुभूति होती है ,यह पीड़ा नितंब से होती हुई जंघा के बाहरी भाग से होती हुई नीचे पैर की उंगलियों तक होती है ।यह दर्द बहुत असहनीय होता है कभी-कभी यह दर्द अचानक होता है ज्यादातर ज्यादा चलने या सीढ़ी चढ़ने की वजह से यह होता है और वजन बढना भी एक मुख्य कारण है ।इसमें ऐसा लगता है कि पैरों की शक्ति खत्म हो गई और कभी कभी सुन्नता का अनुभव होता है ।कभी इस में सुई चुभने जैसी या प्रिकिंग टाइप ऑफ पेन होता है । परहेज  -        1.अधिक  दर्द के समय काम ना करें और आराम करें         2. ऊंची एड़ी की चप्पल न पहने।         3. ज्यादा समय पानी में ना रहे          4.आगे झुकने से बचें        5.कोई भारी सामान न उठाए       6.   बहुत ज्यादा सीढी या पैर से रिलेटेड जैसे सिलाई मशीन के काम न करें

कृमि(krimi) के कारण, लक्षण, तथा आयुर्वेदिक इलाज

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                     कृमि एक प्रकार का आंत्रिक कीडा है।जो आंत्र मे रहता है और उस व्यक्ति के खाने से पोषण ग्रहण करते हुए बढता है।यह सभी को होता है, विशेषता यह छोटे बच्चों को होता है। यह ज्यादातर आंंत्र मे रहता है और वह उस व्यक्ति के खाने से न्यूट्रिशन या पोषण प्राप्त करता है। धीरे-धीरे वह व्यक्ति कमजोर होता है और दर्द का अनुभव करता है कमजोरी मतलब ज्यादातर खून की कमी या हीमोग्लोबिन कम हो जाता है।       कृृमि या worm के प्रकार 1.Tape worm(फीता कृमि) 2.Round worm( गोल कृमि) 3.Pin worm/Thread worm 4.Hook worm  1.   Tape worm/फीता कृमि-            ये कृमि अपनी त्वचा से ही अपना पोषण ग्रहण करते है।बच्चे मे यह ज्यादातर संक्रमित खाद्य का सेवन करने से होता है। 2.   Round worms/गोल कृमि-            यह Ascariasis lumbricoids से होता है। यह ज्यादातर पानी ,मिट्टी और पालतू जानवरों से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और यह गोल कृमि हमारे रक्तस्राव से होता हुआ फुफ्फुस या lungs में पहुंच जाता है।      3.Pin worm/thread worm/धागा कृमि-     यह कृमि छोटे और पतले होते हैं। यह rectum

Dysentery या प्रवाहिका का कारण तथा उपचार

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    Dysentry या प्रवाहिका  परिभाषा-          आयुर्वेद में कहा गया है अपथ्य सेवी व्यक्ति के संचित कफ दोष को जब कुपित वायु नीचे की और बार बार मल संयुक्त कर थोड़ा थोड़ा प्रवाहन के साथ निकलता है, इसे प्रवाहिका कहते है ।            loose motion with blood or mucus is called as dysentry.               डिसेंट्री   या प्रवाहिका को दो प्रकार का कहा गया है। 1- बेसिलेरी डिसेंट्री/bacillary dysentery  2. Amoeabic dysentery             बेसिलेरी डिसेंट्री यह रोक अधिकतर ग्रीष्म प्रधान देश में होता है वर्षा ऋतु में जब मक्खियां अधिक होती है ,दिन में गर्मी ,रात में शीतलता रहती है तब अधिक फैलता है ।समय-समय पर समशीतोष्ण देश में भी हो जाता है ।दोष काल व युद्ध काल में भी तीव्र रूप से फैलता है ।यह बालक वृद्ध स्त्री पुरुष सभी को होता है। जो लोग अन्य पर निर्भर रहते हैं, उन सभी को हो सकता है ।यह कीटाणु जन्य होने के कारण कभी-कभी व्यापक रूप से फैलता है। तब मृत्यु संख्या भी बढ़ जाती है।           बेसिलेरी डिसेंट्री का आक्रमण अकस्मात या अचानक होता है। पेट में दर्द के साथ अतिसार व्याकुलता

Pregnancy (गर्भवती)न होने के कारण तथा उपचार

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Pregnancy ( गर्भवती) न होने के कारण                 गर्भवती न  होने के तीन कारण हो सकते हैं। 1. योनि में लिंग प्रवेश न हो पाना। 2. लिंग प्रवेश होने पर संभोग उपरांत शुक्राणु गर्भाशय ग्रीवा की मार्ग में  होकर गर्भाशय में पहुंचने में बाधा और असमर्थता। 3.लिंग प्रवेश में बाधा या असमर्थता ।                    इसमेंं स्त्री पुरुष दोनो में कुछ ना कुछ दोष  हो सकता है।                 पत्नी संबंधी विकार  --  1.    hymen या योनि छिद्र  अत्यंत सख्त  या उसका rupture ना हुआ हो। प्रथम सहवास में योनिच्छद या hymen फट जाता है । 2.सपीड़ा योनी संकोच- संभोग के समय अंदर में योनि इतनी संकुचित हो जाती है कि लिंग प्रवेश में परेशानी होती है।  3. पहले कभी हुए जख्म आदि के कारण वहां स्कार scar  या योनि छिद्र गुहा अत्यंत छोटी हो जाती है ।यह चोट, व्रण पहले कभी बच्चा होते समय व्रण होने या शल्य कर्म के उपरांत हो सकता है ।  4 .योनि से निकलने वाला स्त्राव ज्यादा acidic होने के कारण शुक्राणु गर्भाशय मे प्रवेश के पहले ही मर जाते हैं। 5. कभी-कभी पत्नी  को संभोग से संवेदना या पीड़ा इतनी होती है कि स्वयं स

नपुंसकता या impotency क्या है ?और इसे दूर करने केअचूक उपाय

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      नपुंसकता या impotency               आज की भागती -दौड़ती जिंदगी मे बढ़ते तनाव तथा मोबाइल, कंप्यूटर ऐसी आधुनिक जीवन शैली के कारण नपुंसकता या इंपोटेंसी बहुतायत में देखी जाती है । जिस प्रकार जीवन में आहार और निद्रा की जरूरत है उसी प्रकार विवाहित जीवन को सफल बनाने के लिए सेक्स की जरूरत है ।विवाह के उपरांत सेक्स के संबंध बनाकर विवाहित जीवन को सफल बनाने बनाने यह बहुत जरूरी है।जिससे आंतरिक शांति(मानसिक तथा शारीरिक दोनों की शांति )कीअनुभूति होती है ।लेकिन कई बार ऐसा वक्त आता है कि बहुत से कारणों से हम अपने पार्टनर को खुश नहीं कर पाते, इसके बहुत से कारण हो सकते हैं। विविध प्रकार की चिंता जरा या वृद्धावस्था, रोग ,व्यायाम आदि कर्म या पंचकर्म अनशन तथा श्त्री संभोग इनका काफी मात्रा में उपयोग करने से शुक्र या वीर्य का क्षय होता है ,तथा संभोग की क्रिया में सफल नहीं हो सकते,कभी-कभी ऐसा होता है ।कि अगर संबंध बनाने की क्रिया में सफल हो भी जाए तो संतान उत्पन्न करने में असफल होता है । कारण                     इसके कारणों को हम दो भाग में विभाजित कर सकते हैं 1. शारीरिक 2.मानसिक ।    

घृतकुमारी या एलोवेरा के चमत्कारी गुण

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       कुमारी या घृतकुमारी    एलोवेरा आज की आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण द्रव्य है।         कुल- liliaceae                           पर्याय        कन्याकुमारी, कुमारी ,दीर्घा पत्रिका, थली रोहा ,कन्या ,बहु पत्रा,विधु ,कपिला आदि इसके पर्याय है।                            गुण रस-तिक्त मधुर ,मधुर वीर्य ,सीत,गुरू ,स्निग्ध पिच्छिल, प्रभाव -भेदन ।इसके अलावा कुमारी को भेदनी शीत विर्य यकृत प्लीहा उदर वृद्धि नाशक बताया गया है                      स्थानीय योग       1.    बन्हि स्फोटक या आग से जलने के कारण उत्पन्न  फफोले को नष्ट करने वाला तथा पीतल और त्वचा के रोगों को नष्ट करने वाला बताया गया है      2.वेदना स्थापनक और  रोपक होने के कारण वेदना तथा दाह युक्त विकारों में इसके इसका लेप किया जाता है ।     3.इसमें थोड़ा हल्दी मिलाकर लेप बांधने पर शोथ और शूल की कमी होती है।     4.अभिष्यन्द नेत्र  में कुमारी का स्वरस डाला जाता है और इसके कारण शूल या दर्द नष्ट होते हैं     5.शोध में कुमारी मूल को कुचल कर थोड़ी जल में महीन पीसकर हल्दी मिलाकर गर्म कर दिन में एक-दो बार इसका अपना क

Depression या अवसाद ka total treatment in ayurveda

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             Depression या अवसाद  -          आज के युग मे अधिकांश लोग इस रोग से ग्रस्त दे है डिप्रेशन की अभिव्यक्ति आक्रांत व्यक्ति की आकृति से ही प्रगट हो जाती है। उसकी मुखाकृति ,चेष्टा ,भाषण, और हाव-भाव है उसे उसके मन का विषाद झलकने लगता है। उसका मुख मंडल कांतिहीन उदास और पिताभ होता है और शरीर शिथिल होता है।          लक्षण या symptoms -    1. रोगी का चेहरा फीका ,पीतवर्णी ,निस्तेज और मुरझाए दिखता है ।   2.किसी भी रोग से ग्रस्त व्यक्ति जब विषाद या depressionसे पीड़ित रहता है, तो उसका यह रोग बढ़ जाता है ।और दीर्घकाल तक बना रहता है।   3.रोगी भूत ,भविष्य और वर्तमान इन तीनों कालों के दुखों का स्मरण करता रहता है और सदैव खिन्न रहता है।   4. उसे अपने प्रत्येक कार्य में असफलता ही पड़ती है। वह निराशा के घेरे से बाहर नहीं निकल पाता।   5. वह अपने पूर्व कर्तव्यों का लेखा-जोखा और जोड़ घटाना करते- करते शरीर और मन दोनों से क्षीण हो जाता है ।उसकी हर सोच में पछतावा और विषाद या डिप्रेशन की चासनी ओतप्रोत होती है।    6. उसे नींद कम आती है या नहीं आती ।भोजन में रुचि नहीं होती और किया हुआ भोजन

Ear discharge या कर्ण स्राव

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              कर्ण स्राव या ear discharge सभी जानते हैं और यह कष्टप्रद होता है शिशु से लेकर वृद्ध सभी आयु में यह पाया जाता है लेकिन बाल्यावस्था में यह विशेष रूप से पाया जाता है ।लोक भाषा में कर्ण स्राव को कान बहना, सर चलना, कान से पीप बहना आदि नामों से जाना जाता है।       इसे इंग्लिश में otorrhea कहते हैं ।       रोग की उत्पत्ति का कारण या cause of ear discharge-     आयुर्वेद में त्रिदोष वात पित्त कफ के प्रकोप से कर्ण स्त्राव की उत्पत्ति होती है ऐसा बताया गया है       1. सिर पर चोट लगने से, कान में नदी या तालाब का पानी भरने से, कान में फोड़ा  फुंसी आदि के फूटने से रक्त मिश्रित पूरी या या पतला लेबर पानी के रूप में बहने लगता है| इस प्रकार के स्राव को कर्ण स्त्राव कहते हैं ।     2.कान को खुजाने ,तिनका लकड़ियां धातु की सलाई से कुरेदने, अंगुली के नाखून लगने अथवा तीव्र औषधि के प्रयोग से कर्ण मे घाव हो जाने से कान बहने लगता है ।     3. प्रतिश्याय या जुकाम के बढऩे से रोग उत्पन्न होता है इसमें कान से पीले रंग का पिव या पानी बहता है ।    4. कान में फोड़ा होने से भी कान से गाढ़ा

Leucorrhea or श्वेत प्रदर

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                            Leucorrhea or श्वेत प्रदर का सरल अर्थ है, स्त्रीयों की योनिमार्ग से एक श्वेत रंग का तरल स्त्राव सदा निर्गत होते रहना।आजकल 99%महिलाओं को यह रोग होता है।             यह रोग दो प्रकार का होता है। 1.श्वेत प्रदर-white discharge through vagina 2.रक्त pradara-bleeding through vagina other day of menstrual cycle      श्वेत प्रदर या Leucorrhea के कारण- शिशुकाल मे बच्चा जब माता पिता के साथ सोते हुए उनके असंयत आचरण को देखता है तो उसके अंदर एक कौतूहल उत्पन्न होती है।तब भी शिशुकाल मे योनिमार्ग से सफेद स्त्राव निकलता है।पर यह एक प्रदर रोग नही है। इसके बाद बच्चे स्कूल में जाते हैं।वहां लड़के लडकि साथ में पढ़ने से और विभिन्न प्रकार क के योनि सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है तथा हस्त मैथुन आदि प्रक्रिया लड़कियाँ सीखती है।इस समय सफेद स्त्राव आरम्भ होता है। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए जब लड़कियाँ जाती है और आजकल movie or programme देखकर उनका आकर्षण बढता है।कभी किसी से सम्बन्ध रहे और pregnancy रही फिर गलत तरीके से abortions होने से श्वेत प्रदर रोग होताहै। आजकल अधिक आयु

मलावरोध या कब्ज or constipation

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  मलावरोध या constipation   बहुत कारणो से हो सकता है। यह समस्या आजकल बहुत लोगो मे देखा गया है।यह पाचन क्रिया digestive system मेंं असंतुलन से होती है।   constipation या कब्ज के कारण acidity,सिर मे दर्द,piles,या बवासीर तथा बेचैनी ऐसी विभिन्न प्रकार की समस्याएँ होती है। कारण या cause - इसका मुख्य कारण हमारी अनियमित जीवन शैली।आयुर्वेद में दिन चर्या और ऋतु चर्या का विशेष वर्णन किया गया है।इसका वर्णन किया गया है।इसका वर्णन अगले post मे किया जाएगा। नींद समय पर न लेने से खाने में fibre युक्त भोजन की कमी पानी की कमी खाने के समय की अनियमितता व्यायाम या आलस्य तनाव 7.दिन भर बैठे रहने वाले काम उपचार या treatment पहले अपने जीवन शैली में कुछ परिवर्तन करना बहुत ज्यादा जरुरी है। ज्यादा पानी पियें..2-3 litre पानी रोज पीना चाहिए।सुबह उठने के बाद 1-2गिलासपानी पीना चाहिये।खाने के 30minutes पहले पानी पीना चाहिए।खाने के 45 minutes बाद पानी पीना चाहिये।.ऐसे कुछ समय और नियम का पालन करना चाहिए। खाना खाने का समय fix करे और उसके हिसाब से उस समय पर खाना खायें।खानाfibre युक्त होना