Depression या अवसाद ka total treatment in ayurveda

             Depression या अवसाद  -

         आज के युग मे अधिकांश लोग इस रोग से ग्रस्त दे है डिप्रेशन की अभिव्यक्ति आक्रांत व्यक्ति की आकृति से ही प्रगट हो जाती है। उसकी मुखाकृति ,चेष्टा ,भाषण, और हाव-भाव है उसे उसके मन का विषाद झलकने लगता है। उसका मुख मंडल कांतिहीन उदास और पिताभ होता है और शरीर शिथिल होता है।

         लक्षण या symptoms -

   1. रोगी का चेहरा फीका ,पीतवर्णी ,निस्तेज और मुरझाए दिखता है ।
  2.किसी भी रोग से ग्रस्त व्यक्ति जब विषाद या depressionसे पीड़ित रहता है, तो उसका यह रोग बढ़ जाता है ।और दीर्घकाल तक बना रहता है।
  3.रोगी भूत ,भविष्य और वर्तमान इन तीनों कालों के दुखों का स्मरण करता रहता है और सदैव खिन्न रहता है।
  4. उसे अपने प्रत्येक कार्य में असफलता ही पड़ती है। वह निराशा के घेरे से बाहर नहीं निकल पाता।
  5. वह अपने पूर्व कर्तव्यों का लेखा-जोखा और जोड़ घटाना करते- करते शरीर और मन दोनों से क्षीण हो जाता है ।उसकी हर सोच में पछतावा और विषाद या डिप्रेशन की चासनी ओतप्रोत होती है।
   6. उसे नींद कम आती है या नहीं आती ।भोजन में रुचि नहीं होती और किया हुआ भोजन ठीक से नहीं पचता तथा मलावरोध रहता है ।
  7.उसे कोई नया कार्य करने का उत्साह नहीं होता और दैनिक कार्य करने में भी रुचि नहीं होती ।वह समाज से अलग रहना पसंद करता है ।लोगों से मिलने जुलने एवं बात करने से कतराता हैं ।
   8.उसे अपना जीवन व्यर्थ प्रतीत होता है ।उदासीनता बढ़ जाने पर उसमें आत्महत्या की भावना उत्पन्न हो जाती हैं ।
  9.निराशा और असफलता जन्य क्षोभ की अधिकता होने से उसे भूख नहीं लगती ।वह खाने-पीने की परवाह नहीं करता ।उसका मुंह सुखा रहता है, शरीर दुर्बल हो जाता है और वजन घट जाता है ।
   10.दुर्बलता और चिंता बढ़ जाने पर वह किसी से बात करना पसंद नहीं करता ।वह अकेला रहना चाहता है और उसकी गतिविधि मंद से मंद तर होती जाती हैं।
   11. इस रोग का प्रभाव दिन में अधिक और रात में कम होता है। एक बार प्रकोप हो जाने पर इसका प्रभाव 4 से 6 महीने तक बना रहता है ।
    12.रोगी किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक कार्य नहीं करना चाहता।वह हाथ पैर हिलाने से जी चुराता है और विचार शून्य स्थिति में पड़ा रहता है ।उसका मन  अस्थथिर रहताहै। वह धीमी आवाज में रुक रुक कर बोलता है।
   13. वह स्व कपोल कल्पित आशंकाओं और चिंताओं  के जाल में फंसा रहता है ,जिस प्रकार मकड़ी अपने द्वारा बुने जाल में फंस जाती है ।वह निराशावादी और आलसी एवं मन्दचेतन होता है ।

        विषाद या डिप्रेशन के प्रकार -

विषाद सात प्रकार का होता है ।

  1. सामान्य विषाद -इसमें रोगी की शारीरिक तथा मानसिक क्रियाओं में शिथिलता आ जाती है। किंतु एकदम रुकावट नहीं होती उसके प्रत्येक कार्य में उदासीनता ही झलक दिखती है।
  2. तीव्र विषाद- उसे अपने चारों और निराशा का घना कोहरा छाया हुआ दिखता है और उसे आशा की पत्नी किरण भी नजर नहीं आती ;जिसके परिणाम स्वरूप अपना जीवन समाप्त कर देना चाहता है।
  3. कर्तव्य बोध शून्य विषाद- उसका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। वह बाल को जैसा व्यवहार करना  है ।वह अपना शरीर भी नहीं संभाल पाता और ना स्वयं भोजन ही कर पाता है। उसे अपच रहता है, शरीर दुर्बल हो जाता है और स्वास्थ्य गिर जाता है।
  4. बहिर्मुखी  विषाद-बहिर्मुखी विषाद किसी बाहरी दुख के आघात से होता है जो अस्थिर होता है और कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है।
  5. अंतर्मुख विषाद-शरीर और मन की निर्बलता से होता है तथा दीर्घकाल तक स्थाई है ।
  6.संवेगात्मक विषाद- तीव्र शोक आदि से उत्पन्न असय्ह और दुखद होता है।
  7.असफलता जन्य विषाद -रोजगार, प्रतिष्ठा या पद प्राप्ति में या प्रेम में सफल न होने पर उत्कट विषाद होता है और व्यक्ति असामान्य हो जाता है ।

               उपचार

   1. कारण की खोज कर उसका निराकरण करना चाहिए।
    2. धैर्य, आश्वासन ,हर्षण, संतोष देना और अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना आवश्यक है।
   3. चिकित्सा दोष के अनुसार तीक्षष्ण, संशोधन  करनी चाहिए ।
    4.स्नेहन ,स्वेदन, शमन, विरेचन ,शिरो विरेचन और बस्ती देकर संशोधन करें ।
    5.पुराने घृत का पान और अभ्यंग करना कल्याण कारक है।
        चिकित्सा -
    1.नस्य और अंजन - मुलेठी ,हींग ,वच,तगर  ,शिरीष बीज ,लहसुन और कुठ को समभाग  लेकर बकरी के मूत्र में भावना देकर सुखा ले इसका नस्य  दें । तथा गोली बनाकर रखें और घिसकर अंजन करें ।
  2.चूना और  नौसादर  समान भाग में लेकर  अलग अलग महिन कर छोटी सीसी में डालकर हिलाकर मिला दे।और  दो-चार बूंद पानी डाल दे । इसका  नस्य  देने से तुरंत होश  आ जाता है।
   3.   अभ्यंग-सिर में शतधौत घृत ,विष्णु तेल ,हिमांशु तेल की मालिश करें ।
  4. बकरी के मूत्र में पीसी सरसों अथवा काली तुलसी ,कड़वा तेल, जटामांसी और शंखपुष्पी में संभाग लेकर गोमूत्र में पीसकर उबटन लगाएं ।
   5. गोमूत्र से स्नान कराएं धारण गले में रुद्राक्ष की माला पहने या यूनानी बूटी उदसलीव काले धागे में बांधकर पहनना चाहिए ।
   6.दूधिया बच का चूर्ण 2 ग्राम और रससिंदूर 200mg और एक मात्रा ऐसी चार मात्रा तीन-तीन घंटे पर मधु से देवें।
   7. श्वेता कुष्मांड बीज 1 ग्राम और मुलेठी चूर्ण 1 ग्राम पीसकर प्रातः सायं में दूध के साथ दे ।8.ब्रह्मी या मण्डुकपर्णी की पत्ती का स्वरस 10 से 20 शहद के साथ मिला कर दे।
इस प्रकार हम आयुर्वेदिक दवाओं द्वारा विषाद या depressionको पूरी तरह ठीक कर सकते है।

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