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Menstrual cycle या मासिक धर्म के समय दर्द क्यों होता है

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                  Menstrual cycle या मासिक धर्म -                                मासिक धर्म या menstrual cycle यह एक स्वाभाविक क्रिया है ।यह सभी लड़कियों को 12 से 16 साल के वर्ष की आयु में होना नितांत आवश्यक है। सभी लड़कियों में 12 से 16 साल या teen age इस समय बहुत सारे शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तन होते हैं ।क्योंकि शरीर में नए-नए हारमोंस तैयार होती हैं । जिसके कारण यह परिवर्तन होना भी जरूरी है ,शारीरिक परिवर्तन लड़कियों और लड़कों में अलग-अलग होते हैं ।लड़कियों में शारीरिक परिवर्तन जैसे कांख में बाल का आना, योनि में बाल का आना, योनि का साइज बड़ा होना ,ब्रेस्ट या छाती के आकार का बढ़ना और मासिक स्राव का आना आदि परिवर्तन होना बहुत जरूरी है। और इसमें एक मुख्य परिवर्तन है, मासिक धर्म का आना। मासिक धर्म के आने के पहले सभी लड़कियों को पहले से ही इसके विषय में ज्ञान होना बहुत जरूरी है ।माता को पहले ही इस विषय के बारे में अपनी लड़कियों को बताना जरूरी होता है ,क्योंकि जब अचानक योनि मार्ग से रक्तस्राव होता है, तो कभी कभी लड़कियां भय के कारण यह शर्म के कारण उसे छुपाती हैं और उन्हें पता भी नही

आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या या daily routine according to ayurved

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आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या या daily routine according to ayurved               दिनचर्या शब्द से रात्री चर्या, ऋतु चर्या आदि का भी ग्रहण किया जाता है ।इस ब्लॉग में उना चरणों की चर्चा की जाएगी जो नर नारी के लिए दोनों लोगों में हितकर होती है ।हमारा आयुर्वेद इस लोक और परलोक को मानता है ।आपको इसके अनेक प्रमाण मिलेंगे ।। 1- ब्रह्म मुहूर्त में जागना-    स्वस्थ निरोग स्त्री पुरुष को अपनी आयु की रक्षा करने के लिए प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए ।ब्रह्म मुहूर्त मतलब रात के तीसरे पहर की दोहरी या दो दंड अर्थात सुबह 4:00 से 6:00 का समय इसी ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है। शरीर की चिंता से निवृत्त होकर अर्थात में उठने योग्य हूं या नहीं ऐसा विचार करके यदि वह अपने को दिनचर्या करने योग्य समझें। इसके बाद तांबे के पात्र में रखा हुआ जेल हल्का सा गर्म करके पिए  या उस जल में एक गिलास जल में आधा नींबू का रस और शहद डालकर भी पी सकते हैं यह डिटॉक्सिफिकेशन का काम करता है  3.  मल तथा मूत्र का त्याग - पानी पीने के बाद शौच  या तब वह सोच विधि मल मूत्र त्याग कर करना चाहिए 4. व्यायाम तथा योग  - मल

Sciatica( साइटिका,गृध्रसी)का कारण तथा इलाज

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                          गृध्रसी या साइटिका -            यह  एक nerve या तंत्रिक से संबंधित रोग है ।यह  nerve रीढ़ की हड्डी से शुरू होती है और कुल्हे और नितंबों के माध्यम से चलती हुई दोनों पैर में दो शाखाएं हो जाती है। जब इस nerve में चोट लगती है ,या कभी  कुल्हे की हड्डियों द्वारा दबती है, तो अत्यंत पीड़ा की अनुभूति होती है ,यह पीड़ा नितंब से होती हुई जंघा के बाहरी भाग से होती हुई नीचे पैर की उंगलियों तक होती है ।यह दर्द बहुत असहनीय होता है कभी-कभी यह दर्द अचानक होता है ज्यादातर ज्यादा चलने या सीढ़ी चढ़ने की वजह से यह होता है और वजन बढना भी एक मुख्य कारण है ।इसमें ऐसा लगता है कि पैरों की शक्ति खत्म हो गई और कभी कभी सुन्नता का अनुभव होता है ।कभी इस में सुई चुभने जैसी या प्रिकिंग टाइप ऑफ पेन होता है । परहेज  -        1.अधिक  दर्द के समय काम ना करें और आराम करें         2. ऊंची एड़ी की चप्पल न पहने।         3. ज्यादा समय पानी में ना रहे          4.आगे झुकने से बचें        5.कोई भारी सामान न उठाए       6.   बहुत ज्यादा सीढी या पैर से रिलेटेड जैसे सिलाई मशीन के काम न करें

कृमि(krimi) के कारण, लक्षण, तथा आयुर्वेदिक इलाज

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                     कृमि एक प्रकार का आंत्रिक कीडा है।जो आंत्र मे रहता है और उस व्यक्ति के खाने से पोषण ग्रहण करते हुए बढता है।यह सभी को होता है, विशेषता यह छोटे बच्चों को होता है। यह ज्यादातर आंंत्र मे रहता है और वह उस व्यक्ति के खाने से न्यूट्रिशन या पोषण प्राप्त करता है। धीरे-धीरे वह व्यक्ति कमजोर होता है और दर्द का अनुभव करता है कमजोरी मतलब ज्यादातर खून की कमी या हीमोग्लोबिन कम हो जाता है।       कृृमि या worm के प्रकार 1.Tape worm(फीता कृमि) 2.Round worm( गोल कृमि) 3.Pin worm/Thread worm 4.Hook worm  1.   Tape worm/फीता कृमि-            ये कृमि अपनी त्वचा से ही अपना पोषण ग्रहण करते है।बच्चे मे यह ज्यादातर संक्रमित खाद्य का सेवन करने से होता है। 2.   Round worms/गोल कृमि-            यह Ascariasis lumbricoids से होता है। यह ज्यादातर पानी ,मिट्टी और पालतू जानवरों से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और यह गोल कृमि हमारे रक्तस्राव से होता हुआ फुफ्फुस या lungs में पहुंच जाता है।      3.Pin worm/thread worm/धागा कृमि-     यह कृमि छोटे और पतले होते हैं। यह rectum

Dysentery या प्रवाहिका का कारण तथा उपचार

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    Dysentry या प्रवाहिका  परिभाषा-          आयुर्वेद में कहा गया है अपथ्य सेवी व्यक्ति के संचित कफ दोष को जब कुपित वायु नीचे की और बार बार मल संयुक्त कर थोड़ा थोड़ा प्रवाहन के साथ निकलता है, इसे प्रवाहिका कहते है ।            loose motion with blood or mucus is called as dysentry.               डिसेंट्री   या प्रवाहिका को दो प्रकार का कहा गया है। 1- बेसिलेरी डिसेंट्री/bacillary dysentery  2. Amoeabic dysentery             बेसिलेरी डिसेंट्री यह रोक अधिकतर ग्रीष्म प्रधान देश में होता है वर्षा ऋतु में जब मक्खियां अधिक होती है ,दिन में गर्मी ,रात में शीतलता रहती है तब अधिक फैलता है ।समय-समय पर समशीतोष्ण देश में भी हो जाता है ।दोष काल व युद्ध काल में भी तीव्र रूप से फैलता है ।यह बालक वृद्ध स्त्री पुरुष सभी को होता है। जो लोग अन्य पर निर्भर रहते हैं, उन सभी को हो सकता है ।यह कीटाणु जन्य होने के कारण कभी-कभी व्यापक रूप से फैलता है। तब मृत्यु संख्या भी बढ़ जाती है।           बेसिलेरी डिसेंट्री का आक्रमण अकस्मात या अचानक होता है। पेट में दर्द के साथ अतिसार व्याकुलता

Pregnancy (गर्भवती)न होने के कारण तथा उपचार

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Pregnancy ( गर्भवती) न होने के कारण                 गर्भवती न  होने के तीन कारण हो सकते हैं। 1. योनि में लिंग प्रवेश न हो पाना। 2. लिंग प्रवेश होने पर संभोग उपरांत शुक्राणु गर्भाशय ग्रीवा की मार्ग में  होकर गर्भाशय में पहुंचने में बाधा और असमर्थता। 3.लिंग प्रवेश में बाधा या असमर्थता ।                    इसमेंं स्त्री पुरुष दोनो में कुछ ना कुछ दोष  हो सकता है।                 पत्नी संबंधी विकार  --  1.    hymen या योनि छिद्र  अत्यंत सख्त  या उसका rupture ना हुआ हो। प्रथम सहवास में योनिच्छद या hymen फट जाता है । 2.सपीड़ा योनी संकोच- संभोग के समय अंदर में योनि इतनी संकुचित हो जाती है कि लिंग प्रवेश में परेशानी होती है।  3. पहले कभी हुए जख्म आदि के कारण वहां स्कार scar  या योनि छिद्र गुहा अत्यंत छोटी हो जाती है ।यह चोट, व्रण पहले कभी बच्चा होते समय व्रण होने या शल्य कर्म के उपरांत हो सकता है ।  4 .योनि से निकलने वाला स्त्राव ज्यादा acidic होने के कारण शुक्राणु गर्भाशय मे प्रवेश के पहले ही मर जाते हैं। 5. कभी-कभी पत्नी  को संभोग से संवेदना या पीड़ा इतनी होती है कि स्वयं स

नपुंसकता या impotency क्या है ?और इसे दूर करने केअचूक उपाय

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      नपुंसकता या impotency               आज की भागती -दौड़ती जिंदगी मे बढ़ते तनाव तथा मोबाइल, कंप्यूटर ऐसी आधुनिक जीवन शैली के कारण नपुंसकता या इंपोटेंसी बहुतायत में देखी जाती है । जिस प्रकार जीवन में आहार और निद्रा की जरूरत है उसी प्रकार विवाहित जीवन को सफल बनाने के लिए सेक्स की जरूरत है ।विवाह के उपरांत सेक्स के संबंध बनाकर विवाहित जीवन को सफल बनाने बनाने यह बहुत जरूरी है।जिससे आंतरिक शांति(मानसिक तथा शारीरिक दोनों की शांति )कीअनुभूति होती है ।लेकिन कई बार ऐसा वक्त आता है कि बहुत से कारणों से हम अपने पार्टनर को खुश नहीं कर पाते, इसके बहुत से कारण हो सकते हैं। विविध प्रकार की चिंता जरा या वृद्धावस्था, रोग ,व्यायाम आदि कर्म या पंचकर्म अनशन तथा श्त्री संभोग इनका काफी मात्रा में उपयोग करने से शुक्र या वीर्य का क्षय होता है ,तथा संभोग की क्रिया में सफल नहीं हो सकते,कभी-कभी ऐसा होता है ।कि अगर संबंध बनाने की क्रिया में सफल हो भी जाए तो संतान उत्पन्न करने में असफल होता है । कारण                     इसके कारणों को हम दो भाग में विभाजित कर सकते हैं 1. शारीरिक 2.मानसिक ।