Dysentery या प्रवाहिका का कारण तथा उपचार

   


Dysentry या प्रवाहिका
 परिभाषा-
         आयुर्वेद में कहा गया है अपथ्य सेवी व्यक्ति के संचित कफ दोष को जब कुपित वायु नीचे की और बार बार मल संयुक्त कर थोड़ा थोड़ा प्रवाहन के साथ निकलता है, इसे प्रवाहिका कहते है ।
           loose motion with blood or mucus is called as dysentry.
              डिसेंट्री  या प्रवाहिका को दो प्रकार का कहा गया है।
1- बेसिलेरी डिसेंट्री/bacillary dysentery
 2. Amoeabic dysentery

           बेसिलेरी डिसेंट्री यह रोक अधिकतर ग्रीष्म प्रधान देश में होता है वर्षा ऋतु में जब मक्खियां अधिक होती है ,दिन में गर्मी ,रात में शीतलता रहती है तब अधिक फैलता है ।समय-समय पर समशीतोष्ण देश में भी हो जाता है ।दोष काल व युद्ध काल में भी तीव्र रूप से फैलता है ।यह बालक वृद्ध स्त्री पुरुष सभी को होता है। जो लोग अन्य पर निर्भर रहते हैं, उन सभी को हो सकता है ।यह कीटाणु जन्य होने के कारण कभी-कभी व्यापक रूप से फैलता है। तब मृत्यु संख्या भी बढ़ जाती है।
          बेसिलेरी डिसेंट्री का आक्रमण अकस्मात या अचानक होता है। पेट में दर्द के साथ अतिसार व्याकुलता बार- बार थोड़ा आम निकलना,  बेचैनी  , ऐंंठन  आदि लक्षण होते हैं।  इसके साथ वमन  भी होने लगती है । सामान्य सिर दर्द व पिंडलियों में तीव्र वेदना व ऐठन होता है । उधर की मांस पेशी मे जकड़न रहती है ।तापक्रम सामान्यता  101 -102डिग्री फॉरेनहाइड तक रहता है ।गंभीर अवस्था में  जिव्हा शुष्क व अधिक जल निकल जाने से शक्तिपात हो जाता है । कभी कभी आता है तो कभी रक्त आता है ।
 
        रोग गंभीर होने पर चेहरे पर नीला पन त्वचा  अति शीतल ,उदर में वेदना,  घुटनों में दर्द , वमन हो रही हो तो अवस्था गंभीर मानी जाती है  बल क्षय  अधिक हो जाता है  ।
     मध्यम व्यवस्था में  उधर  पीड़ा  प्यास अधिक होती है  ।15 से 20 मिनट में शौच होता रहता है । रक्त नहीं आता नाड़ी तेज होती है  ।व्यवस्था 4 से 5 दिन तक रहती है ।
 1. गंभीर बेसिलेरी डिसेंट्री  इसके लक्षण  उपरोक्त लक्षण के समान होते हैं।  इसमें शक्तिपात ,वमन और अतिसार होता है।  इसमें विष प्रकोप व उदर पीड़ा आ पाई जाती है ।1 दिन में 40 से 50 दस्त आ सकते हैं  ।
    2.माइल बेसिलेरी डिसेंट्री  इसमें सामान्य ऐंठन ,जाल,आम,व रक्तमय  शौच आता है।
      3.पुरानी डिसेंट्री  यह 1 माह से अधिक समय तक चलती रहती है । मलावरोध व अतिसार दोनों पाए जाते हैं । दस्तों की संख्या कम होती है। परंतु कष्ट उसी प्रकार रहता है।।       
Complications या उपद्रव

        1. मलावरोध याconstipation, बार बार दस्त आना ,अपचन रहना ,वजन घटना, यह लक्षण पाए जाते हैं ।
      2. रोग मुक्ति के समय संधियों  में शोध पीड़ा , महीनों तक कष्ट होता है ।
      3.इसमें ब्लड प्रेशर भी कम हो जाता है ।
      5.इसके साथ अर्श भी हो सकता है।
        पथ्य-इसमें भोजन दूध चाय पूर्ण रूप से बंद कर देना चाहिए और जल को उबालकर प्रयोग करना चाहिए।
            एमोईबीक डिसेंट्री या amoebic dysentery-
     यह व्याधि एंटेमीबा हिस्टॉलिटिका नामक कीटाणु से होती है। यह शरीर के अंगों में जाकर रक्त प्रवाह के साथ फैल जाते हैं ।और हाथों की तंतु में गहराई से पहुंचते हैं ।यह रक्तकोष में विलीन होकर के यकृत को भी प्रभावित कर देता है ।
        यह कीटाणु प्रवाहिका रोगी के मल में प्रतीत होताहै।इसका संक्रमण मक्खियों से फैलता है। या मक्खियां अन्न जल इनको शो को छोड़ देती है इसकी सेवन करने से व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हो जाता है ।यह रोग अधिकतर बालक व बडी़  आयु वाले युवाओं में होता है । इससे रोगी की संपूर्ण पाचन क्रिया विकृत हो जाती है और  विद्रधि, फेफड़े ,आमाशय ,ग्रहणी ,पेरीटोनियम ,पेरिकार्डियम में होता है
चिकित्सा-
     1.जल को अच्छी तरह से उबालकर शीतल करके छान कर पीना चाहिए ।सुबह और शाम को नया जल लेकर उबालकर उसे प्रयोग करना चाहिए।
    2.खुली मिठाई खुला भोजन होटल पर भोजन आदि का परहेज करना चाहिए ।
     3.पत्ते वाले शाक का उपयोग ना करें एवं हल शाख को बनाने के पहले गर्म जल या पोटेशियम पर मेग्नेट के जल से धोकर प्रयोग करना चाहिए ।
      4.मिर्च ,गरम मसाला व अधिक शक्कर का उपयोग ना करें।
    5.बासी या ठंडे भोजन का यथासंभव उपयोग नहीं करना चाहिए ।
     6. ठंडी हवाओं के स्पर्श से बचाना चाहिए।       7.साथ चाय व दूध का प्रयोग रोगी को कदापि नहीं करना चाहिए।
       8.गाय के तक्र या मठ्ठा का उपयोग इस रोग पर लाभप्रद है। मठ्ठा ,अनार व, सेव देना चाहिए।
       9. गेहूं , भैस का दूध और चाय नहीं देना चाहिए।
     10. साबूदाना मूंंग का युष आदि भोजन कम मात्रा में बार-बार जैसा पाचन हो वैसा देना चाहिए।
      11.पंचामृत पर्पटी दिन में तीन बार देने से यह ठीक होता है।
       12.सत् ईसबगोल तीन ग्राम, सफेद जीरा 1 ग्राम, इलायची चूर्ण आधा ग्राम, इंद्रजौ कड़वी 2 रती या 250 mg, कूड़ासक 1 ग्राम
      सब को मिलाकर चूर्ण करें यह एक खुराक दवा है
        इसे सुबह शाम पानी के साथ ले। यदि पेट में वायु अधिक है तो प्रत्येक खुराक में 4 रत्ती या 500mg मस्तगी मिलाकर 21 दिन सेवन करें।
         उपरोक्त औषध सी पुराना से पुराना dysentry या प्रवाहिका ठीक हो जाता है।

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