Ear discharge या कर्ण स्राव

              कर्ण स्राव या ear discharge सभी जानते हैं और यह कष्टप्रद होता है शिशु से लेकर वृद्ध सभी आयु में यह पाया जाता है लेकिन बाल्यावस्था में यह विशेष रूप से पाया जाता है ।लोक भाषा में कर्ण स्राव को कान बहना, सर चलना, कान से पीप बहना आदि नामों से जाना जाता है।
      इसे इंग्लिश में otorrhea कहते हैं ।

     रोग की उत्पत्ति का कारण या cause of ear discharge-

   आयुर्वेद में त्रिदोष वात पित्त कफ के प्रकोप से कर्ण स्त्राव की उत्पत्ति होती है ऐसा बताया गया है
      1. सिर पर चोट लगने से, कान में नदी या तालाब का पानी भरने से, कान में फोड़ा  फुंसी आदि के फूटने से रक्त मिश्रित पूरी या या पतला लेबर पानी के रूप में बहने लगता है| इस प्रकार के स्राव को कर्ण स्त्राव कहते हैं ।

    2.कान को खुजाने ,तिनका लकड़ियां धातु की सलाई से कुरेदने, अंगुली के नाखून लगने अथवा तीव्र औषधि के प्रयोग से कर्ण मे घाव हो जाने से कान बहने लगता है ।

    3. प्रतिश्याय या जुकाम के बढऩे से रोग उत्पन्न होता है इसमें कान से पीले रंग का पिव या पानी बहता है ।

   4. कान में फोड़ा होने से भी कान से गाढ़ा तथा कुछ पुय युक्त स्त्राव निकलता है।

   5. किसी व्यक्ति में उच्च धमाके या जोर से आवाज के शब्द से कारण  कर्ण  पटल या membrane पर आघात होने से कर्ण स्त्राव होता है ।

    6.कान पर थप्पड़ मार देने से कर्ण पटल मे आघात होने से रक्तमय स्राव होने लगता है ।         
    7.कभी-कभी बच्चों में ओटाइटिस मीडिया या करण के मध्य भाग में शोध या इंफेक्शन होने से स्त्राव होता है।

     उपद्रव या complications  -

         कर्ण स्त्राव से होने वाले नुकसान और उपेक्षा करने से अनेक उपद्रव होते हैं।
   1.कर्ण स्त्राव के निरंतर चलते रहने से बाधिर्य,शिरःशूल, मन्यास्तम्भ  या spondylitis आदि रोग उत्पन्न हो सकते है ।

   2.निरंतर कर्ण स्त्राव से कान में कृमी उत्पन्न हो  सकते हैं। जिसके कारण रोगी को भयंकर कष्ट होता है ।

   3.कर्ण स्त्राव की निरंतर उपेक्षा करते रहने से कान में नाड़ी व्रण बन जाता है ।जिसके कारण बहुत दुर्गंध भी आती है और कष्ट होता है ।

       चिकित्सा or treatment -

    यह सारे प्रयोग अनुभूत परीक्षित प्रयोग हैं
    1 . कर्ण स्त्राव की अवस्था में कान को साफ कर प्याज के ताजे रस को प्रतिदिन तीन से चार बूंद कान में डालने से स्त्राव रुक जाता है ।यदि कर्णस्त्राव जीर्ण हो तो 6 माह का प्रयोग करना चाहिए।

   2. देसी गाय के गोमूत्र को 2 से 3 बूंद दिन में तीन बार कान में डालने से कान का तथा फटा हुआ पर्दा ठीक हो जाता है( ध्यान रहे की गाय गर्भवती ना हो )

   3.चंद्रप्रभा वटी ,शिलाजीत रसायन,सारिवादी  वटी 1-1गोली सुबह शाम पानी के साथ लें ।

   4. जिसके कान में बहुत दर्द होता हो तो सुदर्शन अर्क या सुदर्शन के पत्ते का रस गर्म करके उसका रस निकालना है और वह कान में दो से तीन डालना है। उससे कर्ण स्त्राव मे होने वाले दर्द में आराम मिलता है ।

   5.अगर कान में फुंसी हो तो फुंसी में कायाकल्प तेल लगाना चाहिए और साथ में गिलोय घन वटी का सेवन करना चाहिए।

     इस प्रकार हम पुराना से पुराना कर्ण स्त्राव या ईयर डिस्चार्ज को हम आयुर्वेद से सरल उपाय ट्रीटमेंट कर सकते हैं।

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