घृतकुमारी या एलोवेरा के चमत्कारी गुण
एलोवेरा आज की आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण द्रव्य है।
कुल- liliaceae
पर्याय कन्याकुमारी, कुमारी ,दीर्घा पत्रिका, थली रोहा ,कन्या ,बहु पत्रा,विधु ,कपिला आदि इसके पर्याय है।
गुण
रस-तिक्त मधुर ,मधुर वीर्य ,सीत,गुरू ,स्निग्ध पिच्छिल, प्रभाव -भेदन ।इसके अलावा कुमारी को भेदनी शीत विर्य यकृत प्लीहा उदर वृद्धि नाशक बताया गया है
स्थानीय योग
1. बन्हि स्फोटक या आग से जलने के कारण उत्पन्न फफोले को नष्ट करने वाला तथा पीतल और त्वचा के रोगों को नष्ट करने वाला बताया गया है
2.वेदना स्थापनक और रोपक होने के कारण वेदना तथा दाह युक्त विकारों में इसके इसका लेप किया जाता है ।3.इसमें थोड़ा हल्दी मिलाकर लेप बांधने पर शोथ और शूल की कमी होती है।
4.अभिष्यन्द नेत्र में कुमारी का स्वरस डाला जाता है और इसके कारण शूल या दर्द नष्ट होते हैं
5.शोध में कुमारी मूल को कुचल कर थोड़ी जल में महीन पीसकर हल्दी मिलाकर गर्म कर दिन में एक-दो बार इसका अपना करें व्रण शोधन और रोपण में इसका उपयोग किया जाता है ।
उत्पत्ति
इसका मूल्य स्थान उत्तरी अफ्रीका ,कनारी द्वीप समूह है। इसका मूल स्थान कनारी होने से ही संभवतः उसका नाम कुमारी पड़ा हो ।स्थानों से या पश्चिमी द्वीप समूह चीन भारत आदि देशों में फैला है। भारत में या हिमालय से कन्याकुमारी तक सर्वत्र उत्पन्न होता है ।
रसायनिक संगठन या केमिकल कंपोजिशन
कुमारी में एलोइंग नाम का ग्लूकोसाइड होता है जो मुख्य क्रियाशील तत्व है ।इसके अलावा इसमें बार्बीलोइन पाया जाता है। हलके पीले रंग का ग्लूकोसाइड होता है जो जल में विलेय होता है इसके अतिरिक्त ए लोइन में एलोवेरा मी बार्बी लव तथा आइसो तत्व भी होते हैं। वानस्पतिक परिचय
यह बहुवर्षायु पौधे है।इसके पौधे 2 से 3 फुट ऊंचे होते हैं ।मूल के ऊपर कांड से पत्र निकलते हैं यह कांड चारों ओर से आवेशित किए रहते हैं ।निकास के स्थान पर वर्ण श्वेत होता है धीरे-धीरे आगे जाकर हरा हो जाता है ।पत्र दलदार हरे और एक से डेढ़ फुट तक लंबे होते हैं ।इनकी चौड़ाई 1 से 3 इंच तथा ,मोटाई आधी इंच होती है ।इसके पत्रों का आकार दो प्रकार का होता है । आरंभ में छोड़े और आगे पतले हो जाते हैं जो आगे जाकर नकोदर हो जाते हैं इन पर कांटे लगे रहते हैं ।यह मुड़े हुए होते हैं। पुराने पौधे के मध्य में लंबा पुष्प निकलता है जिस में पुष्प फल लगते हैं पुष्प के अवयव मिलकर एक बिल्ला कार या घंटी का कालिका बनाते हैं ।उससे अधिक लंबी के सूत्र संयोजक के साथ रहते हैं ।पत्रों को काटने से एक पीले रंग का रस निकलता है, जो ठंडा होने पर जम जाता है। इसे कुमारी सार कहते हैं।
कुमारी के रस को प्राप्त करने की उत्तम विधि
कुमारी पत्रों को छोटे-छोटे खंडकर एक मिट्टी के कुंभ में भर दे। इसको कुंभ के तेल में छोटे-छोटे छिद्र बना दें ,जिनसे रस निकल सके पश्चात एक चौड़ी मुख वाले पात्र को इस कुंभ के निचे रखें।इस कुंभ का पात्र के तल से कुछ ऊपर रहे ।
चमत्कारिक उपयोग
1. कुमारी और नीम गिलोय निरंतर सेवन का चमत्कारी प्रभाव -कुमारी के गूदे को नियमित रूप से सेवन करने से और उस पर नीम गिलोय का स्वरस बराबर मात्रा में पीते रहने से प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में जबकि इन दिनों की शीथिलता का योग प्रारंभ होता है ।मनुष्य का योग इस औषधि के प्रभाव से सुरक्षित रहता है ।2. कुमारी दीपन पाचन होने से पाचकाग्नि के विकार में भी लाभदायक है ।दीपन पाचन हेतु इसकी अल्प मात्रा ही उपयुक्त है।
3. विरेचन हेतु इसकी अधिक मात्रा दिया जा सकता है।
4. कुमारी की मुख्य कार्य और यह कुमारी अग्नि वर्धक है ।इसके साथ पाचकाग्नि अच्छी रहती है इसकी उपयुक्त मात्रा लाभप्रद होती है ।
5घृतकुमारी कुमारी का उपयोग और व्रण या फोड़ा जहां पर सूजन दाह हो यहां पर प्रयोग कर सकते हैं ।इसमें एल्विन नामक रसायनिक तत्व मिलते हैं जो घाव को भरने में सहायक सहायता करता है तथा इसमें एंटीबायोटिक भी पाया जाता है।
इसलिए जिस प्रकार तुलसी का पौधा घर में रखना चाहिए उसी प्रकार हर घर में गुरु कुमारी का पौधा गमले कर रखमें उगा ना चाहिए।
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