Leucorrhea or श्वेत प्रदर

             
              Leucorrhea or श्वेत प्रदर का सरल अर्थ है, स्त्रीयों की योनिमार्ग से एक श्वेत रंग का तरल स्त्राव सदा निर्गत होते रहना।आजकल 99%महिलाओं को यह रोग होता है।
            यह रोग दो प्रकार का होता है।
1.श्वेत प्रदर-white discharge through vagina
2.रक्त pradara-bleeding through vagina other day of menstrual cycle
     श्वेत प्रदर या Leucorrhea के कारण-

  1. शिशुकाल मे बच्चा जब माता पिता के साथ सोते हुए उनके असंयत आचरण को देखता है तो उसके अंदर एक कौतूहल उत्पन्न होती है।तब भी शिशुकाल मे योनिमार्ग से सफेद स्त्राव निकलता है।पर यह एक प्रदर रोग नही है।
  2. इसके बाद बच्चे स्कूल में जाते हैं।वहां लड़के लडकि साथ में पढ़ने से और विभिन्न प्रकार क के योनि सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है तथा हस्त मैथुन आदि प्रक्रिया लड़कियाँ सीखती है।इस समय सफेद स्त्राव आरम्भ होता है।
  3. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए जब लड़कियाँ जाती है और आजकल movie or programme देखकर उनका आकर्षण बढता है।कभी किसी से सम्बन्ध रहे और pregnancy रही फिर गलत तरीके से abortions होने से श्वेत प्रदर रोग होताहै।
  4. आजकल अधिक आयु के लडकियों कि शादी करने की प्रथा चालु है।जिसके कारण लड़कियों की अधिकांश क्षेत्र में यौन लालसा अतृप्त रही है, उस समय अस्वाभाविक उपाय से यौंन वासना को तृप्त करने की प्रवृत्ति होती है और उसके लिए लिंग के स्थान पर तदाकार विभिन्न द्रव्य का प्रयोग करते है।जिससे अस्वाभाविक उत्तेजना और जीवाणु संक्रमण होकर श्वेत प्रदर रोग होता है।
  5. इसके अलावा पूयमेह से पीड़ित व्यक्ति के साथ संभोग से भी स्त्रियों में श्वेत प्रदर रोग होता है।
  6. रजोनिवृत्ति के बाद स्त्रियों में कुछ दिन तक सफेद स्त्राव होता रहता है।यह भी कष्टदायक होता है।
वृद्धावस्था मे भी senile vaginitis के कारण योनि प्रदाह कि उत्पत्ति होती है।यह बहुत कष्ट दायक होती है।इसमे भी सफेद स्त्राव होता है।
          इस प्रकार श्वेत प्रदर के बहुत से कारण हो सकते हैं।

    श्वेत प्रदर के कारण उत्पन्न अन्य लक्षण-

            श्वेत प्रदर के कारण कुछ समय में सारे शरीर में विशेषतः कमर में पीड़ा ,यकृत कि कमजोरी,ठीक से पचन न होना, कब्ज ,आलस,कमजोरी, जननांगों मे खुजली तथा छोटे छोटे फोडे आदि होते है।कभी कभी श्वेत प्रदर के साथ रक्त प्रदर भी दिखाई देता है।

        चिकित्सा-

  1. प्रथमतः बद्धकोष्ठता को दूर करना आवश्यक है।कारण मल संचय अप्रत्यक्ष रूप से प्रजनन संस्थान में उत्तेजना पैदा करता है।(कब्ज या बद्धकोष्ठता का वर्णन पहले blog मे किया गया है।)
  2. प्रदर रोग के कारण जो अन्य रोग उत्पन्न हुए उसकी चिकित्सा।
प्रदर रोग की चिकित्सा।

       औषध-

  1. प्रदरान्तक लौह-2-2 tablet चौलाई के मूल तथा चावल के धोवन के साथ
  2. रात में सोने से पहले सुपारी पाक  1/2-1 तोला गर्म दूध के साथ
  3. चन्द्र प्रभा वटी-1-1 वटी दो बार
बंग भस्म शहद के साथ

  स्थानीय चिकित्सा/local treatment-

  1. योनि को अच्छे से स्वच्छ रखना है तथा स्वच्छ कपड़ें पहने
  2. सुबह और शाम को pot.permagnat या आजकल v-wash liquid मिलते हैं।जिससे योनि स्वच्छ रखना जरूरी है।

  1. पथ्यापथ्य-

  1. इसमें गर्म तथा उत्तेजक भोजन विशेष रूप से नहीं करना चाहिए
  2. मांस, अंडा, प्याज, लहसुन, मिर्च, गर्म मसाला, चटपटा, तथा भुना हुआ पदार्थ का सेवन वर्जनीय है।

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